Madhu varma

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लेखनी कविता -मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें 'ग़ालिब' - ग़ालिब

मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें 'ग़ालिब' / ग़ालिब


मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें ग़ालिब
यार लाए मिरी बालीं पे उसे पर किस वक़्त

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